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मुनव्वर राना माँ शायरी : Munawwar Rana Maa Shayariमां पर मुनव्वर राना के 30 शेर | MUNAWAR RANA FAMOUS SHER ON MAA
Munawwar Rana
Shayari in hindi
मुनव्वर राना माँ शायरी : Munawwar Rana Maa Shayari
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मां पर किसने क्या नहीं लिखा. दुनिया लिख
डाली. उर्दू ग़ज़ल में मां पर सबसे ज़्यादा मुनव्वर राना ने लिखा है. उनसे
पहले ग़ज़ल में सब कुछ था. माशूक़, महबूब, हुस्न, साक़ी सब. तरक़्क़ीपसंद
अदब और बग़ावत भी. पर मां नहीं थी. इसलिए उन्होंने कहा भी है कि,
तो पढ़िए, मां के मुक़द्दस रिश्ते पर सबसे अज़ीम शेर, मुनव्वर राना की कलम से.
मुनव्वर राना माँ शायरी : Munawwar Rana Maa Shayari
ये मेरा नाम-ए-आमाल इज़ाफी होगा
नेकियां गिनने की नौबत ही नहीं आएगी
मैंने जो मां पर लिक्खा है, वही काफी होगा
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती
पयम्बर क्या परेशानी में उम्मत छोड़ सकता है
मैं अपनी माँ का आखिरी ज़ेवर बना रहा
मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई
माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ
माँ ! हम अपने साथ बस तेरी दुआ ले जायेंगे
माँ तुझे हम अभी बूढ़ा नहीं होने देंगे
देर तक बैठ के तन्हाई में रोया कोई
ज़मीन माँ है इसे छोड़ कर न जाऊँगा
मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है
माँ कभी सर पे खुली छत नहीं रहने देगी
कि जब परदेस जाने के लिए बेटा निकलता है
महाज़े-जंग से मैं लौट कर न जाऊँगा
यही तोहफ़े थे वो जिनको मैं अक्सर याद करता था
माँ सबसे कह रही है कि बेटा मज़े में है
बासी भी हो गई हैं तो लज़्ज़त वही रही
किसी बच्चे का जब पहला सिपारा ख़त्म होता है
सिर्फ़ इक काग़ज़ पे लिक्खा लफ़्ज़—ए—माँ रहने दिया
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती
किसी का हाथ अभी मेरे सर के नीचे है
कि जब तक जागती रहती है माँ मैं घर नहीं जाता
मैं बूढ़ा हो रहा हूँ फिर भी पेशानी चमकती है
काग़ज़ पे जब भी देख लिया माँ लिखा हुआ
मैं जब तक घर न लौटूं, मेरी माँ सज़दे में रहती है
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है
मां दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है
मामूली एक कलम से कहां तक घसीट लाए
हम इस ग़ज़ल को कोठे से मां तक घसीट लाए
तो पढ़िए, मां के मुक़द्दस रिश्ते पर सबसे अज़ीम शेर, मुनव्वर राना की कलम से.
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मुनव्वर राना माँ शायरी : Munawwar Rana Maa Shayari |
मुनव्वर राना माँ शायरी : Munawwar Rana Maa Shayari
1
दावर-ए-हश्र तुझे मेरी इबादत की कसमये मेरा नाम-ए-आमाल इज़ाफी होगा
नेकियां गिनने की नौबत ही नहीं आएगी
मैंने जो मां पर लिक्खा है, वही काफी होगा
2
मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसूमुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना
3
लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होतीबस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती
4
मुसीबत के दिनों में हमेशा साथ रहती हैपयम्बर क्या परेशानी में उम्मत छोड़ सकता है
5
जब तक रहा हूँ धूप में चादर बना रहामैं अपनी माँ का आखिरी ज़ेवर बना रहा
6
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आईमैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई
7
ऐ अँधेरे! देख ले मुँह तेरा काला हो गयामाँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया
8
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती हैमाँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है
9
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँमाँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ
10
हादसों की गर्द से ख़ुद को बचाने के लिएमाँ ! हम अपने साथ बस तेरी दुआ ले जायेंगे
11
ख़ुद को इस भीड़ में तन्हा नहीं होने देंगेमाँ तुझे हम अभी बूढ़ा नहीं होने देंगे
12
जब भी देखा मेरे किरदार पे धब्बा कोईदेर तक बैठ के तन्हाई में रोया कोई
13
यहीं रहूँगा कहीं उम्र भर न जाउँगाज़मीन माँ है इसे छोड़ कर न जाऊँगा
14
अभी ज़िन्दा है माँ मेरी मुझे कु्छ भी नहीं होगामैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है
15
कुछ नहीं होगा तो आँचल में छुपा लेगी मुझेमाँ कभी सर पे खुली छत नहीं रहने देगी
16
दुआएँ माँ की पहुँचाने को मीलों मील जाती हैंकि जब परदेस जाने के लिए बेटा निकलता है
17
दिया है माँ ने मुझे दूध भी वज़ू करकेमहाज़े-जंग से मैं लौट कर न जाऊँगा
18
बहन का प्यार माँ की ममता दो चीखती आँखेंयही तोहफ़े थे वो जिनको मैं अक्सर याद करता था
19
बरबाद कर दिया हमें परदेस ने मगरमाँ सबसे कह रही है कि बेटा मज़े में है
20
खाने की चीज़ें माँ ने जो भेजी हैं गाँव सेबासी भी हो गई हैं तो लज़्ज़त वही रही
21
मुक़द्दस मुस्कुराहट माँ के होंठों पर लरज़ती हैकिसी बच्चे का जब पहला सिपारा ख़त्म होता है
22
मैंने कल शब चाहतों की सब किताबें फाड़ दींसिर्फ़ इक काग़ज़ पे लिक्खा लफ़्ज़—ए—माँ रहने दिया
23
माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोनाजहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती
24
मुझे कढ़े हुए तकिये की क्या ज़रूरत हैकिसी का हाथ अभी मेरे सर के नीचे है
25
बुज़ुर्गों का मेरे दिल से अभी तक डर नहीं जाताकि जब तक जागती रहती है माँ मैं घर नहीं जाता
26
मेरे चेहरे पे ममता की फ़रावानी चमकती हैमैं बूढ़ा हो रहा हूँ फिर भी पेशानी चमकती है
27
आँखों से माँगने लगे पानी वज़ू का हमकाग़ज़ पे जब भी देख लिया माँ लिखा हुआ
28
ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता,मैं जब तक घर न लौटूं, मेरी माँ सज़दे में रहती है
29
चलती फिरती आँखों से अज़ाँ देखी हैमैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है
30
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती हैमां दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है